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कादम्बरी / पृष्ठ 4 / दामोदर झा

14.
नहि से भोग-विलास हास रस लीला धरती तलमे
जकर पार धरि ई नहि पेखल भोगल वा अनुपलमे।
सब सुख भोग-विलासहुँ परिचित सबठाँ रसिक कहाबथि
केवल ललनासंगम सुखके कौखन मन नहि लाबथि।।

15.
कुसुमायुध सगरे धरतीमे खूब प्रयत्न लगओलनि
ताहि प्रकारक सुन्दरि युवती नहि भूतलमे पओलनि।
ले जावण्य चकमकी लागल हाव-भाव संचारय
शूद्रक केर हृदय नयनहुँ वा वश करबामे पारय।।

16.
छला एक दिन सभा भवनमे से सचिवक सङ बैसल
विनय नम्र प्रतिहारी कर युग जोड़ि सभामे पैसल।
कहलक-नृप, चण्डालकुमारी दूर देशसँ आयल,
दर्शन हेतु ठाढ़ि अछि अद्भुत कीर उपायन लायल।।

17.
सुनि छन भरि किछ सोचि विचारक हेत सचिव मुख देखल
आबओ सभा भवनमे, की छति, भूपति ई निरदेसल।
आज्ञा पाबि नृपक प्रतिहारी लगले से बहरायल
करिया रङसँ रङल शारदा जनु तकरा सङ आयल।।

18.
चण्डाली केर रूप देखि से सभा चकित भय गेले
मायाछन्न देवता थिक ई सबके निश्चय भेले।
अद्भुत लखि लावण्य तकर नृप चकित छनेक विचारल
एकरा रूपे क्यो मनुजा की सुर तिरियो अछि हारल।।