Last modified on 28 अक्टूबर 2013, at 12:29

कादम्बरी / पृष्ठ 56 / दामोदर झा

69.
पयर पकड़ने कहल तरलिका नोरे गाल भिजै छल
राजकुमरि, छोड़ गुरुजन भय कुल लज्जासँ की फल।
अपना जीवनके राखू रक्षा करु विप्रयुवहुँ केर
अछि गान्धर्व विवाहक विधि ई संमत अछि शास्त्रहुँ केर

70.
हमरा शीघ्र पठाउ ओतय जा हम हुनका लय आबी
अथवा स्वयं उठूं हमरा सङ चलू ओतय पहुँचाबी।
एतबा जखन तरलिका कहक सैह नीक मन लागल
उठि कालोचित वस्त्र पहिरलहुँ बड़ आतुरता जागल॥

71.
केवल ओकरे संग प्रमदवन खिड़की मारग धयलहुँ
दशो दिशा चन्द्रिका विराजित शून्य विपिनमे अयलहुँ।
ओएह बात सब पुनि पुनि कहिते दहिन आँखि पड़कै छल
झट झट उत्सुक प्यर चलै छल बुझि छाती धड़कै छल॥

72.
अशुभक शंकासँ आकुलचित द्रुत गति प्यर बढ़ओलहुँ
किछ छनमे अच्छोद सरोवर के तट वन लगिचओलहुँ।
तावत किछ अस्पष्ट शब्द दूरहिंसँ कानब सुनलहुँ
हृदय हेड़ायल ई की अछि कहि तेज चालिसँ चललहुँ॥

73.
ऊभड़ पथमे खसिते उठिते एतय विपिनमे अयलहुँ
चीन्हल स्वरहुँ कपिंजल केर कनारि मारि हम कनलहुँ।
कहथि कपिंजल हाय मित्र, की दोषे संग तजै छी
पुण्डरीक हा हाय तपोनिधि! कहु नहि किए बजै छी॥