84.
नभसँ भूतल उतरि मृतकके ओ भरि पाँज उठओलक
पिता जकाँ नभमे उड़ैत घुरि दयाभावसँ कहलक।
धैरज धरू महाश्वेता, बेटी, नहि प्राण उसारु
पुनि हिनकासँ हयत मिलन ई अवितथ वचन विचारू।
85.
एतबा कहि ओ उड़ल गगन-पथ धड़फड़ाय हम उठलहुँ
भय आश्चर्ये क्षुब्द कपिजलसँ की ई जा पुछलहुँ।
ओहो क्रोध केर मुद्रामे उठि फेटा डाँड़ सम्हारल
कतय मित्रके हरि जाइत छे ई कहि उपर निघाड़ल॥
86.
हमर वचन केर उत्तर नहि दय लगले उड़ल गगनमे
लखिते रहलहुँ बहुत वेगसँ पहुँचल तारागणमे।
उड़ल उड़ल तीनू विलीन ई भेल चन्द्रमण्डलमे
आश्रय-कटल लता-सन हम तखनहिं खसलहुँ भूतलमे।
87.
पुनि उठि कण्ठ तरलिका केर धय कानि-खीजि कहलहुँ हम
बाज तरलिका, ई की भेलै कर मरबा लय उद्यम।
कहलक पयर पकड़ि घबड़ायलि राजकुमारि, कहल की
कोनो देव पिता जनु कहलनि संगम हयत सुनल की॥
88.
पाछू सँ गेलाह कपिजल सबटा पता लगओता
के ओ छल हिनका लय गेल किएक आबि ओ कहता
हुनका अयला पर विचारिके जीवन-मरण यथोचित
से आचरब प्रतीक्षा तावत करू धैर्य कय संचित॥