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कादम्बरी / पृष्ठ 65 / दामोदर झा

20.
चारू मातु पिता केर मन बहटारै लय हम रहलहुँ
प्राण हमर तँ अहीं चोराके अपना सङ लय अनलहुँ।
एहन कथा जँ ककरहु मुखसँ फेरो कहा पठायब
राखू बूझि अहाँ एहि तनुमे हमरा नहि पुनि पायब॥

21.
इएह कहै लय कहलनि कादम्बरी अहाँ सुनिते छी
छथि गन्धर्वराज चिन्तित से सकल बात जनिते छी।
एतबा कहि केयूरक हिनकर टुकुर टुकुर मुह देखल
सकल महाश्वेता सुनि मनमे काज कठिन ई लेखल॥

22.
निश्चल नयन बिचारथि मनमे पुनि किछ युक्ति फुरओलनि
चन्द्रापीड़क दिशि लोचन दय नम्रभावसँ कहलनि।
राजकुमार! स्वभाव अहाँके मृदु आकार मनोहर
निर्लोभहुँके दै अछि किछ प्रार्थना करै लय अवसर॥

23.
कादम्बरी कहल जे किछु से केयरकसँ सुनलहुँ
बिना स्वयं गेने नहि मानत ई मनमे हम गुनलहुँ।
अछि गन्धर्व राजधानी नहि दूर हेमकूटहिं पर
परम मनोहर जतय राति दिन उत्सव होइ अछि घर घर॥

24.
मानि हमर अनुरोध सुसज्जित भुवन आँखिसँ देखू
कादम्बरी उदारहृदय अछि हमरहिं सन ई लेखू।
रूप अहाँक उदात मधुर हम सबके ओतए देखायब
मानत सब उपकार हमर हमहूँ अहाँक गुन गायब॥