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कादम्बरी / पृष्ठ 67 / दामोदर झा

30.
तकर मध्य मणिमय पलंगपर राजकुमरि बैसलि छलि
रत्नाभरण चित्र सब वनिता चारू दिशि पसरलि छलि।
आभूषण मणि विभा दबौने देह कान्ति पसर छल
दशो दिशामे द्रवित हेम रस धार जकाँ ससरै छल॥

31.
नव लावण्य सिन्धुमे बैसलि लक्ष्मी जकाँ लगै छल
देखि महायोगी मुनि जनके धैरज हेतु खगै छल।
चन्द्र सरोज मोर खंजन जगमे उपमान बनल छल
हिनका लग उपमेयो नहि दासता हेतु नमरल छल॥

32.
हिनका तनुक विलास देखि नभमे बिजुली लज्जित छल
रती रमा पार्वती गिरा चिन्ता जलनिधि मज्जित छल
सब सुषमासँ आगु बढ़लि सन राजकुमरिके देखल
चन्द्रापीड़ मनहिं अपनाके भाग्यवान कय लेखल॥

33.
सोचल बूढ़ विधाता हिनका कथमपि नहि निरमओलनि
कुसुमायुध फूलक करनीसँ रचि रचि रूप् बनओलनि।
लक्ष्मीके छाती पर रखने व्यर्थे हरि गर्वित छथि
आधा वपु गौरीके धयने हरहु भाग्यचर्वित छथि॥

34.
व्यर्थे नेत्र सहस्रक भारी बोझ इन्द्र उठबै छथि
निर्निमेष हिनका निरखैलय लोचन नहि पठबै छथि।
चन्द्रपीड़ इएह सब चिन्तथि तावत राजकुमारी
कादम्बरी उठलि विकसित मुख दौड़लि प्रभुदित भारी॥