Last modified on 28 अक्टूबर 2013, at 12:40

कादम्बरी / पृष्ठ 72 / दामोदर झा

55.
किन्तु शेष नामक ई हिनके रूप योग्य भूषण अछि
रत्नहार अथवा तनु मन धन भवन सहित अर्पण अछि।
लिअ जाउ जल्दीसँ हिनका गरदनिमे पहिरायब
बहुत दिवससँ ई राखल अछि एकरा सफल बनायब॥

56.
मदलेखाके पठा साँझ भरि रहल महल ऊपरमे
देखि निशागम उतरलि धयने रूप कुमारक उरमे।
राजकुमार श्वशुर मन्दिर सभ घेरल युवती जनसँ
सायंकृत्य समापल सबटा परम प्रफुल्लित मनसँ॥

57.
भोजन कय छप्पन प्रकार केर बैसल फटिक शिला पर
सुरभि मशाला पानदान लय सब सुहासिनी तत्पर।
पूर्व भागमे देखल विनु चन्दाक इजोरिया आबय
की थिक? अजगुत भाव विलोकल अमृतहिं नयन जुड़ाबय॥

58.
मदलेखा केर संग तरलिका ओम्हरहिंसँ ता आयल
छल सराइमे शेषहार जे हुनकहिं लय छल लायल।
तकरे प्रभा गगन पसरै छल मनमे मोद बढ़ाबय
थकलो जन केर अवलोकनसँ तनमे बल लय आबय॥

59.
ताही शिला उपर दुहु बैसलि हँसि-हँसि गप्प लड़ाबय
वस्त्राभूषण बहु अनने छल से कुमरहिं पहिराबय।
पहिराओल सुन्दर फूलक गजरा पुनि हार उठायल
कहलक दुर्लभ हार उपायन दै लय हम छी आयल॥