Last modified on 30 अक्टूबर 2013, at 11:06

कादम्बरी / पृष्ठ 85 / दामोदर झा

45.
ताही ठाम उतरि सैनिक आवास बनओलक
घोड़ा सबके जीन खोलि किछ घास खोअओलक।
राजकुमर गेला दरसनक हेतु मन्दिरमे
सम्मुख लोह महिष देखल चण्डिका अजिरमे॥

46.
भक्ति भावसँ बेदी पर जा शीश झुकओलनि
कयल प्रदक्षिण थल विलोकि अपरुब सुख पओलनि।
आबि द्रविड़ धार्मिक लखि ता क्रोधे घोघिआयल
नाक धुनैत अशुद्ध भेल थल कििह मरड़ायल॥

47.
एक पयरसँ नाङर लुल्ह कनाहो छल ओ
रक्त वस्त्रसँ गर्वित अर्ध बताहो छल ओ।
विभव रूप वनिता लय देवीके आराधय
नर खप्पड़ धय दीप निशीथ मशानो साधय॥

48.
लय त्रिशूल मारय दौड़य जे लगमे आबय
गारि पढ़य अपना भाषामे रोब जनाबय।
जानि-बूझि खिसिआबय सैनिक मन बहटारय
जैखन हँटय धुनी लगसँ ई सब जल ढारय॥

49.
देखल राजकुमार बिहुँसि ओकरा लग गेले
सैनिक सबके डाँटि भगा समुझओता कयले।
पुछलापर ओ कहल अपन पुरबिल गौरव गुण
रूप पराक्रम विपुल कीर्ति पुरुषा वैभव धन॥