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कादम्बरी / पृष्ठ 89 / दामोदर झा

10.
सोचल तखन पत्रलेखा तँ आबओ एतय हयत आधार
बुद्धिमती अछि सोचि कहत किछ भ्रमिकेर नाव लगाओत पार।
एहिना बोतल एक मास दिन दिन कुमर होथि तनु छीन
ई दुख मातु पिता नहि जनलनि सावधान ओ छला प्रवीण॥

11.
ताही समय पत्रलेखाके मेघनाद अनलनि उज्जैन
चन्द्रापीड़ भेला किछ हुलसित जेना आइ मन भेलनि चैन।
मेघनादके पीठो ठोकल बिदा कयल बड़ कय सत्कार
कयलनि सभा विसर्जित लगले ओकरा लय आनल आगार॥

12.
कादम्बरीहिं पत्रलेखाके बूझथि छबथि बारंबार
सबटा समाचार ई पूछल जे केलकैक जेना व्यवहार।
कादम्बरी तखन की कहलनि जखन तो छले अयबालेल
बड़ दुख हुनका भेले होयतनि जखन ओतय केयूरक गेल॥

13.
कहलक जोड़ि पत्रलेखा कर देव, पुछै छी की ई बात
सेवा करू जनक जननी केर हुनक बात सब राखू कात।
मनसिज छला प्रसन्न अहाँपर हुनका धरि लय देलनि दान
पवनकुमार जकाँ मालाके फोड़ि अहाँ कयलहुँ अपमान॥

14.
केयुरक मुख जैखन सुनलनि अपने केर उज्जैन प्रयाण
ताड़ित वज्रलतासन कँपली मुख देने लाबा हो धान।
लगले शय्यापर ओ घड़यली सखि सब आबि करनि उपचार
हमरहुसँ नहि बजली दिन भरि रातिहुँ नहि कयलनि आहार॥