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कादम्बरी / पृष्ठ 98 / दामोदर झा

1.
केयूरकतँ गेल पत्रलेखाके लयक
राजकुमार बिचारथि किछ मन हल्लुक कयक’।
हुनक जीवनधार भेल ई कार्य हमर अछि
अपन गमन लय युक्ति फुरायब अति दुष्कर अछि॥

2.
वैशम्पायन आबहु ओ निज बुद्धि लगाओत
ओझरायल अछि जाल हमर तकरा सोझराओत।
एहिना राजकुमार सोचि किछु दिवस बितओलनि
थकलनि बुद्धि बिचारि सोझ नहि मारग पओलनि॥

3.
तवत सुनलनि सेना अछि दशपुर धरि आयल
पटगृह कय सुसताय खबरि ई क्यो छल लायल।
लगले उत्कण्ठित भय निकट भूप केर गेले
अगुआनी कय जाय अनैलय छुट्टी लेले॥