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कादम्बरी / पृष्ठ 99 / दामोदर झा

4.
कहुना दिवस बिताय कसकि क’ साँझ पड़ओलनि
संग चलै लय घोड़सवार सेना सजबओलनि।
जगले लैत करौट राति किछु समय बितओलनि
अर्धरात्रि केर बाद चलक डंका बजबओलनि॥

5.
इन्द्रायुधपर चढ़ि दशपुर केर मारग लेले
राति बितैत बाट दस कोस पार कय गेले।
भोरे पहुँचथि सेनामे भेले सब चकिते
उठि-उठि कयल प्रणाम करय शिर नीचा लखिते॥

6.
वैशम्पायन एतय कोन खेमामे निबसय
जकरा पूछथि शिर झुकाय से पाछू घसकय।
चौंकल राजकुमार तेज गति आगू बढ़ला
देखि बलाहक सेनापतिके तुरत उतरला॥

7.
पूछथि चन्द्रापीड़ कतय वैशम्पायन छथि
लागल ताहि बुकौर कहल एहिठाँ ओ नहि छथि।
सुनिते घोड़ा छोड़ि गाछतर जा ई खसला
हा वैशम्पायन कहि शोकक सागरमे धसला॥

8.
कानथि नाम पुकारि मित्र, हमरा तजि देलहुँ
छोड़ि अहाँके पढ़ि चिट्ठी व्यर्थे हम एलहुँ।
कोन ठाम के पथ रोकल ककरासँ जूझल
ककरा हाथे मृत्यु भेल हम से नहि बूझल॥