Last modified on 22 सितम्बर 2016, at 03:01

कान्हा / नीता पोरवाल

तुम्हारी परछाई
असंख्य रश्मि पुंज सी
मेरी सर्द हुई हथेलियों को
सघन उष्मा देती हुई

तुम्हारी परछाई
पीले हाथो की छाप सी
बेरँग मन की ड्योढ़ी पर
इन्द्रधनुषीय रंग भरती हुई

तुम्हारी परछाई
मुस्कुराती सी
कुछ यूँ फुसफुसाती सी
हूँ तो सही
यहीं
तुम्हारे साथ
हर घड़ी

हाँ
तुम्हारी परछाई का
अहसास भी
मुझे कम तो नहीं