Last modified on 23 अप्रैल 2020, at 17:42

कान्हा की होली / आशा कुमार रस्तोगी

माखन चोर, भयौ चितचोर, जु बहियाँ पकरि कै, करत बरजोरी,
ग्वालन सँग, जु भरि सब रँग, करति हुड़दंग, जु खेलति होरी।

रँग लगाइ, कपोलन पै, जु चलौ मुसकाइ, हियन पै भारी,
अँग सबै, जु भिजोइ दयै, अब कासे कहौं सखि, लाज की मारी।

स्वाँग रचाइ कै, घूमै कोऊ, मदमस्त छटा, कछु बरनि न जाई,
अवनि के छोर, ते व्यौम तलक, चहुँ ओर अबीरहुँ की छवि छाई।

बाजत मदन मृदंग कहूँ, अरु ढोल की थाप पै, नाचत कोई,
भाँग के रँग माँ, चँग कोऊ, कछु आपुनि तान माँ, गावत कोई।

देवर करत किलोल कहूँ, अरु साली परै कहुँ, जीजा पै भारी,
परब हैं "आशा" कितैक भले, पर होरी की रीति सबन ते है न्यारी...!