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कान्ह की बाँकी चितौनी चुभी / मुबारक

कान्ह की बाँकी चितौनी चुभी, झुकि काल्हि ही झाँकी है ग्वालि गवाछिन।

देखी है नोखी सी चोखी सी कोरनि, आछै फिरै उभरै चित जा छनि॥

मरयो संभार हिये में 'मुबारक, ये सहजै कजरारे मृगाछनि॥

सींक लै काजर दै गँवारिन, ऑंगुरी तैरी कटैगी कटाछनि॥

वह साँकरी कुंज की खोरि अचानक , राधिका माधव भेंट भई।

मुसक्यानि भली, ऍंचरा की अली! त्रिबली की बलि पर डीठि दई॥

झहराइ, झुकाइ, रिसाइ, 'ममारख, बाँसुरिया, हँसि छीनि लई॥

भृकुटी लटकाय, गुपाल के गाल मैं ऍंगुरी, ग्वालि गडाई गई॥