मम मन-मन्दिर में एक बार, बस एक बार ही तुम आते।
इस दुखिया की, इस दीना की, साधन सफल तुम कर जाते॥
बिठला करके हृदयासन पर, अंतर्पट शीघ्र लगा देती।
तेरे अभिनन्दन में प्रियतम जीवन-निधियाँ बिखरा देती॥
मम तृषित-दृगों को एक बार, तुम दर्शन-सुधा पिला जाते।
इस दुखिया की, इस व्यथिता की, सफला साधना बना जाते॥
अभिषेक तुम्हारा कर देती, तुमको ही मान इष्ट! ईश्वर।
अस्फुट भाषा बनकर मंजुल मृदु कुसुम, बिखर जाती तुम पर॥
मेरे आँसू बन नेह-नीर, करते पद-पंकज प्रक्षालन।
जीवन-वीणा पर तेरा ही अनुराग-राग करती गायन॥
मम प्राणों के कण-कण भगवन््! तुम में विलीन बस होजाते।
आहें बन जातीं प्रेम-भवन, वेदना मधुमयी मंजु लहर॥
मंजुल लहरी से हो जाता मधुसिक मृदुल मम अभ्यन्तर।
पीड़ा बन जाती वीणा-स्वर, गाती स्वागत के गान मधुर॥
उच्छ्वास प्रणय-सन्देश सुना प्रमुदित करते तुमको प्रभुवर।
तब हृदय-मंच प्रणय के नये प्रेम-अभिनय होते॥
मम-कलित-कल्पना कलिका का, तुमको लखकर विकास होता।
आशाओं की होती सुमूर्ति, अभिलाषा का विलास होता॥
हँस उठते मेरे शुष्कअधर, उल्लासों की क्रीड़ा होती।
मम-हृदय व्यथा भी मिट जाती, यदि हृदय-देव का पा जाती॥
‘नलिनी’ निज नयन बिछा देती, तव-पथ में यदि आ तुम जाते।
तन मन सर्वस्व समर्पण कर, मम प्राण तुम्हीं में रम जाते॥