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कामिनी / महेन्द्र

रातिमे
महमह करैत अछि कामिनी
नित्तह रस्ता-पेरा
गमकैत रहैत अछि कामिनी
आब लोककें
कामिनीक गाछसँ
नाक नहि सटब’ पड़ैछ
नाक धरि पहुँचैत रहैछ
कामिनीक गंध....।

कामिनीक उज्जर-उज्जर फूल
पन्द्रहिया रहैछ भकरार
अन्हरिया आ इजोरिया दुनूमे
गंधक हाथें छूबैत रहैछ कामिनी !
नपैत रहैछ दूरी
अपन परागक डेगसँ
चलैत रहैछ अनवरत
पसरैत रहैछ कामिनीक सुगन्धि
हमरा, अहाँकें, सभकें छुबैत-छुबैत
मलरैत रहैछ...।
मुदा लोक
कामिनीक गंधसँ
परिचित भ’ ताकि रहल अछि
कोनो नवका गंध
नवका परागक
नूतन मकरन्दसँ परिचितिक लेल
आरम्भ क’ दैत अछि राजनीतिक मंथन
मंथनक आकाश झिलमिला जाइछ
आ कामिनीक लेल धनि सन
धनि सन अछि ओकर संसार
कामिनी !
ओहिना फुलाइत अछि नित्तह
गमकैत रहबाक लेल प्रतिबद्ध अछि ओहिना
सुगन्धि बिलहैत अछि सदिखन
कामिनीक फूल
पातक अरिपन सन
स्थिर अछि ओहिना।