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काम न आया / संजय पंकज

राम वाम हो गए जभी से
कोई अपने काम न आया!

लिए हाथ पर जिनके तलवे
रेगिस्तानों में साथ चला
वक्त पड़ा तो उनका सौदा
तय हुआ कि ज्यों फुटपाथ छला

सारी पूँजी लुटी हाट में
लौटा एक छदाम न आया!

जहाँ जनम कर बड़ा हुआ जब
पता नहीं था तपना होगा
जिस साए ने सींचा; सोचा
घर है तो अपना होगा

खत-खुतूत दर-दीवारों पर
अंकित अपना नाम न आया!

राम समझ कर पास गया तो
सबके सब वे रावण निकले
जेठ हवाले सावन करते
परम संत वे पावन निकले

आग आग के धरा धाम पर
पल भर भी आराम न आया!