दो अदद थकान के
पहाड़ों के बीच
घाटी-सा काम पड़ा है
कमरे के चेहरे पर
आब नहीं
अधजले उदास कई क्षण पड़े
इधर-उधर
जिनका कोई कहीं
हिसाब नहीं
चाँदी के तारों से
कसा हुआ दिन
कितना मायूस खड़ा है ?
घर भर में काम पड़ा है ।
दो अदद थकान के
पहाड़ों के बीच
घाटी-सा काम पड़ा है
कमरे के चेहरे पर
आब नहीं
अधजले उदास कई क्षण पड़े
इधर-उधर
जिनका कोई कहीं
हिसाब नहीं
चाँदी के तारों से
कसा हुआ दिन
कितना मायूस खड़ा है ?
घर भर में काम पड़ा है ।