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कायाकल्प / गिरिधर राठी

फिर क्या हो जाता है

कि क्लास-रूम बन जाता है काफ़ी-हाउस

घर मछली बाज़ार?


कोई नहीं सुनता किसी की

मगर खुश-खुश

फेंकते रहते हैं मुस्कानें

चुप्पी पर,

या फिर जड़ देते नग़ीने !


करिश्मे अजीबोग़रीब -

और किसी का हाथ नज़र भी नहीं आता -

पहलू बदलते ही

जार्ज पंचम हो जाते हैं जवाहर लाल !