एक ही दिन
एक ही मुहूर्त में
हत्यारे स्नान करते हैं
हज़ारों-हज़ार हत्यारे
सरयू में, यमुना में
गंगा में
क्षिप्रा, नर्मदा और साबरमती में
पवित्र सरोवरों में
संस्कृत बुदबुदाते हैं और
सूर्य को दिखा-दिखा
यज्ञोपवीत बदलते हैं
मल-मलकर गूढ़ संस्कृत में
छपाछप छपाछप
खूब हुआ स्नान
छुरे धोए गए
एक ही मुहूर्त में
सभी तीर्थों पर
नौकरी न मिली हो
लेकिन कई खत्री तरुण क्षत्रिय बने
और क्षत्रिय ब्राह्मण
नए द्विजों का उपनयन संस्कार हुआ
दलितों का उद्धार हुआ
कितने ही अभागे कारीगरों-शिल्पियों
दर्ज़ियों, बुनकरों, पतंगसाज़ों,
नानबाइयों, कुंजडों और हम्मालों का श्राद्ध हो गया
इसी शुभ घड़ी में
(इनमें पुरानी दिल्ली का एक भिश्ती भी था !)
पवित्र जल में धुल गए
इन कम्बख़्तों के
पिछले अगले जन्मों के
समस्त पाप
इनके ख़ून के साथ-साथ
और इन्हें मोक्ष मिला
धन्य है
हर तरह सफल और
सम्पन्न हुआ
हत्याकाण्ड !
(1990-91)