काला राक्षस
वह खड़ा है ज़मीन से आकाश के उस पार तक
उसकी देह हवा में घुलती हुई
फेफड़ों में धँसती धूसर उसकी जीभ
नचाता है अंगुलियाँ आकाश की सुराख़ में
वह संसद में है मल्टीप्लेक्स मॉल में है
बोकारो-मुंगेर में है
मेरे टी.वी. अख़बार वोटिंग मशीन में है
वह मेरी भाषा
तुम्हारी आँखों में है
हमारे सहवास में घुलता काला सम्मोहन
काला सम्मोहन काला जादू
केमिकल-धुआँ उगलता नदी पीता जंगल उजाड़ता
वह खड़ा है ज़मीन से आकाश उस पार तक अंगुलियाँ नचाता
उसकी काली अंगुली से सबकी डोर बंधी है
देश सरकार विश्व संगठन
सत्ताओं को नचाता
उसका अट्टहास।
काली पालीथिन में बंद आकाश।