इस धमन-भट्ठी में
एक सन्नाटे से दूसरे में दाखिल होता हुआ
बुझाता हूँ
देह
अजनबी रातों में परदे का चलन
नोंचता हूँ
गंध के बदन को
यातना की आदमख़ोर रातों में
लिपटता हूँ तुम्हारी देह से
नाख़ून गड़ा कर तुम्हारे
माँस पर
लिखता हूँ
प्यास
और प्यास...
एड़ियों के बोझ सर पर
और मन दस-फाड़
ख़ून-पसीना मॉल वीर्य सन रहे हैं
मिट्टी से उग रहे ताबूत
ठौर नहीं छाँह नहीं
बस मांगता हूँ
प्यास
और प्यास...