कालिंदी-तट ठाढ़े नटवर।
कदँब-मूल मृदु बेनु बजावत, गावत मिलि सखियन सँग सुंदर॥
सिर सिखिपिच्छ मुकुटमनि-मंडित, अलकावलि अति लजवत मधुकर।
पीत बसन, बन-कुसुम-माल गल, कटि किंकिनि, पग बाजत नूपुर॥
ढोलक-झाँझ-सितार-सरंगी मधुर बजावत सखीं लिऐं कर।
जल-खग बन-पंछी सब मोहित, गौ सब मुग्ध सुनत मृदु-मधु-सुर॥