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कालिदास / भारत यायावर

कल अचानक कालिदास मिल गए
एक कुल्हाड़ी कन्धे पर रखे जंगल की ओर जा रहे थे
मैंने उनके हाथ को अपने हाथों से छुआ
तो लगा दुनिया को पहली बार छू रहा हूँ
कालिदास ने कहा — लकड़हारे का बेटा हूँ
पिता बीमार हैं
लकड़ी काटने जंगल जा रहा हूँ मैं !
मैंने कहा — अब जंगल कहाँ है ?
कुछ पेड़ हैं जिनके काटने पर सरकारी रोक है !
कालिदास ने कहा — ठीक है ! जीविका का कोई और उपाय ढूँढ़ना होगा !
तभी तो लकड़हारे की जाति लुप्त हो गई !
और न जाने कितने पेशे लुप्त हो गए
उन्ही के साथ लुप्त हो गई उनकी जाति !

मैंने कहा — कालिदास जी, ब्रह्म तेज लुप्त हो गया, फिर भी ब्राह्मण हैं
क्षात्र धर्म लुप्त हो गया यानी रक्षा करने का भाव लुप्त हो गया, फिर भी क्षत्रिय हैं
तो कालिदास लकड़हारा क्यों नहीं?
" कालिदास जिस डाली पर बैठता है, उसी को काटता है
वह काल की अवधारणा को ही मानो काटता है
काल पर सवार होकर उसी को काटना ही कालिदास होना है
शिव जो शून्य है
वही मुक्त है
प्रकृति से एकाकार होने के लिए रमण करना ही
सृष्टि की सदवृत्तितों का सम्भव होना है
कुमार सम्भव ही कालिदास होना है
यही मेरे कवित्व को कालयात्री बनाता है! "

कालिदास जब चुप हुए
मेरे भीतर की एक अनोखी चुप्पी प्रकट हुई
यह मेरे सपनों के भीतर से प्रकाशित हुई थी
उसने मुझे अपने कन्धे पर बिठाया
और सातवें आसमान पर ले गई
जहाँ एक महामौन छाया हुआ था
एक अदृश्य महामुनि का चिन्तन पसरा था
जो धरती पर टपक रहा था

मैं जब जगा
तो लगा दुनिया को पहली बार छू रहा हूँ
कहीं कालिदास को देख रहा हूँ
जो मेरी चुप्पी में ही बसते हैं