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काल्हि तँ रवि छै / कुमार पवन

 ओ आइ मुदित छलाह
दूनू बेकती कामकाजी
कहुना कऽ
एक दोसरासँ राजी
बूढ़ छलथिन माय बाप
तीन तीन टा बाल बच्चा
अध्ययनरत पलखति नहि
दम लेबाक एक दोसराक हाल पुछबाक
दगमगाइत सम्हरैत
कोसक कोस दौगैत
कण–कणकेँ दुहैत
क्षण–क्षण हकमैत
मुट्ठीमे बसात पकड़ैत
ठेहिआयल छलाह मुदा, आइ मुदित छलाह
मुदित छलाह जे
सप्ताहक आइ छैक अंत
काल्हि तँ रवि छैक
रहब काल्हि निश्चिंत
काल्हि तँ रवि छैक....
जदपि ओ नीक जकाँ जनैत छलाह
राखल छनि तैयार कयल काजक
दीर्घ पुर्जी काजक आगाँ
अपन कोन मर्जी बजौने छनि काल्हिए
दर्जी काल्हिए जुटयबाक छनि घरक खर्ची कीनबाक छनि
माय–बापक लेल दबाइ
ट्यूटर बिनु अटकल छनि बेटाक पढ़ाइ
ठीक करयबाक छनि टी. बी.
कतोक दिनसँ पत्नी छथिन्ह परेशान
गैसक चूल्हि कऽ रहल छनि हरान
नोकरी करथु कि भुकभुकाइत चूल्हिसँ संघर्ष
सऽख तँ भइए गेलनि सुड्डाह मुदा,
तैयो ने कऽ सकैत छथि आह....
से ओ नीक जकाँ जनैत छलाह
जे पछिले अनेक रवि जकाँ
कल्हुको रवि आयल जेना अबैत रहल अछि
आबि कऽ चलि जायत
जेना जाइत रहल अछि औचके मोन चलल छलनि प्र
श्नोत्तर की सरिपहुँ काल्हि रवि रहए?
की सरिपहुँ काल्हि रहब निफिक्किर?
नहि! जिनगी मे कोनो रवि कहाँ?
समय बीतैत अछि अविराम जिनगीमे
कतय अछि आराम?
तदपि पता नहि किएक बना कऽ रखैत
एकटा सुखद भ्रम ओ आइ मुदित छलाह
चलू सप्ताहक आइ छैक अंत काल्हि तँ रवि छैक
रहब काल्हि निश्चिंत काल्हि तँ रवि छैक