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काल के जल में / तुलसी रमण

काली चींटियों पर
सफ़ेद छतरियाँ ताने कुछ खुम्ब
हरी घास पर

दूर-पार तक कोई नहीं
ख़ामोश है हवा
बहुत दिनों बाद निकला अतिथि सूरज
पृथ्वी के माथे पर चमक रहा

अलग-अलग निखरे रंग
एक लय धूप में


तिनका-तिनका घास उतर कर
पशु के खुर से बने जलाशय में
तैरने लगीं चींटियाँ
दोपहर की धूप में

निखरे रंगो के बीच
काल के जल में
तैर रहा जीवन
              दिसंबर 1990