काल बंधा है
दिव-देवालय
के पाषाणी
वृषभ कण्ठ से;
बधिर, अचंचल,
घंटे जैसा
मौन टंगा है
आसमान से
भू तक लटका;
मैं अनबजा
वही घंटा हूँ ।
काल बंधा है
दिव-देवालय
के पाषाणी
वृषभ कण्ठ से;
बधिर, अचंचल,
घंटे जैसा
मौन टंगा है
आसमान से
भू तक लटका;
मैं अनबजा
वही घंटा हूँ ।