ब्राह्मण को तुकारने वाला वह काशी का
- जुलहा जो अपने घर नित्य सूत तनता था
लोगों की नंगई ढाँकता था । आशी का
- उन्मूलन करता था जिसका विष बनता था
- जाति वर्ण अंहकार । क़ब्रें खनता था
- मुल्लों मौलवियों की झूठी शान के लिए
रूढ़ी और भेड़ियाधसान को वह हनता था
- शब्द बाण से । जीता था बस ज्ञान के लिए
- गिरे हुओं को खड़ा कर गया मान के लिए ।
- राम नाम का सुआ शून्य के महल में रहा,
पन्थ-पन्थ को देखा सम्यक ध्यान के लिए
- गुरु की महिमा गाई, वचन विचार कर कहा ।
साँई की दी चादर ज्यों की त्यों धर दीनी
इड़ा पिंगला सुखमन के तारों की बीनी ।