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काश ऐसा भी हो चुका होता / मदन मोहन दानिश

सारे सुख आके जा चुके होते
दुख हमें आज़मा चुके होते
हर जुदाई को जी चुके होते
अपने होठों को सी चुके होते
 
सारे सूरज निकल चुके होते
हर अँधेरा निगल चुके होते
रंग चेहरों के धुल चुके होते
सारे किरदार खुल चुके होते
 
सच कहीं मुँह छिपा चुका होता
झूठ दुनिया को खा चुका होता
रोज़ ओ शब् आके जा चुके होते
सारे करतब दिखा चुके होते
 
काश सब कुछ ये हो चुका होता
फिर जो मिलता मैं तुझसे जाने हयात
जो भी होता नया नया होता
जो न होता नया नया होता ।