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का हो गइल / तैयब हुसैन ‘पीड़ित’

बुझल-बुझल लागत बा जियरा के जोत
दिन जनमल रात अइसन घटा के अलोत
डूब गइल सुरुज मन के कवना घाट
अँखिया में उग आइल नदिया के पाट
ए बदररिया के का हो गइल !

देख रंगल पोखरा में भोर के नहात
पुरवइया चुनरी से फुद-फुद बतियात
गँवई-गुजरिया के लट बारम्बार
ऐनक से करे रोज झगड़ा-तकरार
ए बेअरिया के का हो गइल !

चान मुअल लाश अइसन जल में दहाय
महुआ के लोर भरल हाट में बिकाय
लोहू पिअले लउके सेमर के फूल
मौसम के कपड़ा में लंगटे बबूल
ए नजरिया के का हो गइल !

दूर-दूर रहे कबो अनचिन्हल अन्हार
अब त सबसे उहे नगीच के चिन्हार
जिनगी दू-सांसन के डोर में टंगात
कटल अस तिलंगी के हवा में पतात
ए उमिरिया के का हो गइल !