जीवन का व्याकरण कितना कठिन
आह ! कितना कठिन
मौसम का गूँगापन
चुभा-चुभा सूनापन
रोम-रोम बेध रहीं
अन्तरतम छेद रहीं
जुही-पीत-पत्रों की नोकें ज्यों पिन
जीवन का व्याकरण कितना कठिन
टेढ़े रिश्ते
हिमाच्छदित वातावरण
हर चेहरे पर नये
अवगुंठन आवरण
हर जीवन अलजबरा,
हर जीवन व्याकरण
कल्पों-सी रातें और सदियों-से दिन
जीवन का व्याकरण कितना कठिन
नग्नप्राय संस्कृतियाँ
विकृतियाँ, विकृतियाँ
बनती हैं, मिटती हैं
सपनों में संसृतियाँ
बिकती हैं अस्मत-सी
कालजयी कलाकृतियाँ
आदर्श झूठे हैं
सिद्धान्त रूठे हैं
एकलव्यों के नित
कटते अंगूठे हैं
द्रोणों को देख-देख आती है घिन
जीवन का व्याकरण कितना कठिन