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कितना खलता है / अमरनाथ श्रीवास्तव

कितना खलता है
अपने में तिल-तिल घटना
तट की चट्टानों-सा
धीरे-धीरे कटना

बर्फ़ के पहाड़ों-सा
क्रमशः हलका होना
जल से आहत होने पर भी —
जल का होना
आटे की गोली-सा
मछली-मछली बँटना
              कितना खलता है

चुभते एहसासों से
बचने-कतराने में
झरबेरी-सी उलझी
सुबहें सुलझाने में
केले के पत्ते-सा
रेशे-रेशे फटना
              कितना खलता है

छूट गई ट्रेनें जो —
उनकी धुन्धली कतार
डूब रही नब्ज़ —
लौट आने का इन्तज़ार
बूढ़े तोते-सा
भूले सम्बोधन रटना
              कितना खलता है