आज तलक यादों के फेरे कभी हुए ना बैरी मेरे
डूब चला यौवन का सूरज कब तक इंतजार करूं मैं।
कितनी बार सजाए वंदन कितनी बार भुलाए बंधन
तेरे आने की आहट सी होती कितनी बार चिरंतन
संदेशा तेरा ले-लेकर आती है जब-जब पुरवाई
उमड़ पड़े अखियों का सागर कैसे प्रतिकार करूं मैं।
रोज चिड़ाए मुझको दर्पण रोज सताएं बैरी कंगन
बाट जोहते अखियां सूजीं भई श्याम अब काया कुंदन
ठट्ठा कर-कर सखि-सहेली तृष्णा रोज जगा देती हैं
कैसे बीते दिन बरसों के क्या भूलूं क्या याद करूं मैं।
आशाओं के दीप जलाए अरमानों की सेज सजाए
कल आओगे, कल आओगे मन में यह विश्वास जगाए
अंतर की पीड़ा को अब तक अधरों ने दुत्कार दिया है
ओ निष्ठुर परदेशी बतला कितना तुझको प्यार करूं मैं।