कितना सकून देता है / आरसी चौहान

आसमान चिहुँका हुआ है
फूल कलियाँ डरी हुई हैं
गर्भ में पल रहा बच्चा सहमा हुआ है

जहाँ विश्व का मानचित्र
ख़ून की लकिरों से खींचा जा रहा है
और उसके ऊपर
ण्डरा रहे हैं बारूदों के बादल

ऐसे समय में
तुमसे दो पल बतियाना
कितना सकून देता है।

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