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कितना सिखाओगे मुझे? / हिमांशु पाण्डेय

 
 
चेहरे पर मौन सजा लेते हो
क्योंकि बताना चाहते हो मुझे
मौन का मर्म,
हर पल प्रेम और स्नेह से
सहलाते हो मुझे
शायद बताना चाहते हो
एक स्नेही,एक प्रेमी का कर्म
आकंठ डूब जाते हो हास्य में
मेरे जैसे गर्हित की आस के लिये
शायद देना चाहते हो यह जीवन-दर्शन
कि 'जीवन हास ही तो है'
और सोख कर गम
बरसा देते हो खुशी
यही समझाने के लिये शायद
कि 'जीवन गम और खुशी का रास ही तो है"।

और भी न जाने कितने अनगिनत भाव
सजा लेते हो एक साथ
एक ही अरूप-रूप पर
मुझ जैसे अकलित,विरहित,अकुसुमित के लिये।

कितना सिखाओगे मुझे?