Last modified on 10 फ़रवरी 2018, at 16:38

कितनी सरलता से / कुमार मुकुल

{{KKCatK​​ avita}}

कितनी सरलता से
चली जाती है तू
असभ्यता और सभ्यता के ​​
मिलन बिंदु पर
निर्वस्त्र होती हुई
जैसे प्रसव पीड़ा की
बेचैनी को याद करती
तेरी आत्मा
इस मांसावरण को चीर
नूतन रूप
धारण करना चाहती हो।

एंजलीना जोली - 2