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कितने घर बने / ओम पुरोहित ‘कागद’

घर
बनाने के लिए
पेड काटे
समतल की धरती
बिल्ल रोके
सुलटाया झाड्झंखाड ।
चिडी बेघर
चींटीनगरा साफ़
सांप-कीट
बिलों में कैद !

कितने घर बने
कितने उजडे ?

अनुवाद-अंकिता पुरोहित "कागदांश"