होंठों तक आ
आकर जाने कितने वचन लौट जाएँगे!
कितना मुश्किल
दुविधाओं के पहरे से बचकर आ पाना,
कितना मुश्किल
मजबूरी की देहरी लाँघ निकल कर आना।
कितना मुश्किल
हँसते रहने का वादा कर रोते रहना,
कितना मुश्किल
दो पाँवों पर इक भारी मन ढोते रहना।
इतनी
मुश्किल सहकर जाने कितने चरण लौट जाएँगे!
मन माटी
जैसा ही रखना कोई चाहे कुछ भी बो ले।
इतनी आँच
न देना मौला मन माटी से पत्थर हो ले।
जिस मंदिर
का देव स्वयं ही शापित जीवन जीता होगा।
वहाँ याचनाओं
का हर घट या खण्डित या रीता होगा।
वहाँ तिरस्कृत
होकर जाने कितने भजन लौट जाएँगे!