♦ रचनाकार: अज्ञात
किनकर सिर बिहुली<ref>एक पेड़; संभवतः ‘बेली फूल’</ref> फूल, किनका तिलक सोभे हे।
किनका सोभै टेढ़ी पाग, कौने मुख चन्नन हे॥1॥
राम के सिर बिहुली फूल, लछुमन तिलक सोभे हे।
हलुमान के सोभै टेढ़ी पाग, भरथ मुख चन्नन हे॥2॥
राजा के राजो न भाबै, रानी बिरोधली<ref>दुःखित होना; विरोधी हो जाना</ref> हे।
ऊँची सिंहासन सिया जानकी, मने मने छगुनती<ref>चिंता करना</ref> हे।
आबे सिया रहली कुमारि, मनहिं मन सोचती हे॥3॥
आनि के गोबर नीपह, नीपह आँगन हे।
धनुखा राखहो ओठगाँय, धनुख कोय न तोरै हे॥4॥
धीरज धरु भइया लछुमन, हे भइया रामचंदर हे।
हुकुम मिलत महराज, धनुख हम तोड़ब हे॥5॥
हुकुम मिलल रघुनंदन, धनुखा तोड़ल हे।
धनुखा भैले तिन खंड, दुंदभी बाजल हे॥6॥
शबद सुनल पसुराम, गोपी दल साजल हे।
जेहो धनुखा खंड करत, सीता बिआहि घर जायत हे॥7॥
शब्दार्थ
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