Last modified on 8 मार्च 2014, at 00:13

किन्तु / पवन करण

मानने की जगह उनकी बात
जब मेरे मुँह से 'किन्तु' निकला
उनसे बरदाश्त नहीं हुआ

उन्होंने अपनी बात दोहराई
इस बार भी जब मेरी जुबान ने
'लेकिन' कहा तो वह
बुरी तरह बौखला गए

गला फाड़कर चिल्लाते हुए
उन्होंने अपनी बात तिहराई
इस बार भी मैं 'मगर' कह सका

गुस्से में उन्होंने जब कहा कि वे सब
हाँ सुनने के आदी हैं तब भी
मेरे मुँह से 'जी' नहीं निकला

'किन्तु', 'लेकिन', 'मगर'
इन छोटे-छोटे शब्दों ने
उनकी हाँ सुनने की
आदत के सामने मुझे
'हाँ' 'जी' 'ठीक' तक नहीं बढ़ने दिया