दे दो सवेरे को क़दम
टूटे अँधेरे का अहम्
निर्दोष दीपक जल रहा अपराधियों के गाँव में
दो दर्द को वह स्वर कि जल जाए उदासी का कफ़न
पा जाए फिर से ज़िन्दगी
उजड़ा चमन, मुरझा सुमन
हो साफ़-सुथरी हर गली
शबनम बिछा दो मख़मली
काँटा न लग जाए कहीं, उजली किरण के पाँव में
जिस पर सफलता की नज़र वह साधना कुन्दन बनी
यश ने जड़े नग इस तरह
हो मेदिनी की करघनी
लेकिन मृतक-सा जो यतन
दुर्भाग्य को करता नमन
उसकी तपन को दो शरण चन्दन सरीखी छाँव में
घबरा न माँझी प्राण के विपरीत यदि तीखा पवन
किसको नहीं इस रात की
मँझधार में तट की लगन
आलोक की शमशीर से
काली लहर को चीर दे
असमय न तम भर जाए, अनब्याहे सपन की नाँव में