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किश्तों में बीते दिन / कुमार रवींद्र

फिर राजा-रानी के
            किस्सों में रात कटी
 
टूटे घर-नीड़ों में
परियों के पंख हिले
जंगल के बीच मिले
ऊँचे सुनसान किले
 
किश्तों में दिन बीते
             हिस्सों में बात बँटी
 
आदमकद शीशों में
सपनों के अक्स पले
महलों में जश्न हुए
परजा के हाथ जले
 
घटनाएँ खतरों की
           अपनों के साथ घटीं