Last modified on 15 अक्टूबर 2014, at 22:06

किसकी पाकीजा निगाहें मुझसे बरहम हो गयीं / नज़ीर बनारसी

किसी पाकीजा निगाहें मुझसे बरहम <ref>नाराज, तितर-बितर</ref> हो गयीं
जिन्दगी की जैसे सारी बरकतें <ref>फाये, वैभव</ref> कम हो गयीं

पाक थीं सारी तमन्नाएँ मगर मस्ती की आग
जन्नतें जितनी मिली थीं सब जहन्नुम हो गयीं

सारी दुनिया के मनाजिर <ref>दृश्य का बहुचतन, नजारे</ref> कैसे फीके पड़े गये
कुछ नजर कम हो गयी या रौनकें कम हो गयीं

उनकी नजरें उनकी जुल्फें उनकी महफिल ऐ ’नजीर’
मेरी खातिर सबकी सब इक साथ बरहम हो गयीं

शब्दार्थ
<references/>