किस ने देखा चाँद?-जिस ने उसे न चीन्हा एक अकेली आँख,
अकेला एक अनझरा आँसू जीवन के इकलौते अपने दुख का,
बँधी चिरन्तन आयासों से, खुली अजाने, अनायास
सीपी के भीतर का अनगढ़ मोती?
सीपी-वासी जीव, न जाने जीवित है या स्वयं जीव की सूनी सीपी!
किन्तु नहीं सन्देह कि मोती उसकी मर्म-व्यथा का फल है-
उजली सूनी सीपी
चाँद न जिस ने चीन्हा-किसने देखा चाँद!
जलन्धर, 13 अगस्त, 1945