पापा! मुझे बताओ बात
कैसे बनते हैं दिन-रात,
चंदा तारे दिखें रात को
सुबह चले जाते चुपचाप।
पापा! पेड़ नहीं चलते हैं
ना ही करते कोई बात
कैसे कट जाते हैं, पापा!
इनके दिन और इनकी रात।
और ढेर-सी बातें मुझको
समझ क्यूँ नहीं आती हैं,
ना घर में बतलाता कोई
ना मैडम बतलाती हैं।
फिर मैं किससे पूछूँ, पापा!
मुझको बतलाएगा कौन
डाँट-डपट के कर देते हैं
मुझको, पापा! सारे मौन।