महाराजाओं का एक भी वंश ऐसा नहीं
जिसका इतिहास इतना लम्बा रहा हो
जितना कि किसान के वंश का ।
मिट चुके हैं न जाने कितने ही वंश
पर ज़िन्दा है आज भी किसान का वंश ।
हल की फाल से बना है उसका सिंहासन,
हँसिये और हथौड़े से सजा हुआ
सजा हुआ कुदाल और कुल्हाड़ों से ।
फीका पड़ जाता है
बड़े से बड़े सम्राट के राज्य का इतिवृत
किसान के वंश के इतिहास के सामने,
भरा पड़ा है वह जलाई गई
ज़मींदारों की हवेलियों की राख से,
क्रोध की तरह भारी
कसी हुई मुट्ठियों से ।
लिखना नहीं जानते थे
ऐसे इतिहास के रचयिता
अँगूठा लगाते थे दस्तख़त की जगह ।
जल्लादों के फन्दों और संगीनों से
न जाने कितनी कोशिशें की
उनके इतिहास के पन्नों को फाड़ने की
पर उसका इतिहास
बार-बार झाँकता है बाहर
खेत की सीताओं से
जिस तरह झाँकता है ख़ून
बन्धी हुई मुट्ठियों के भीतर से
मेरे उनींदे गीतों के बीच से ।
रूसी से अनुवाद : वरयाम सिंह