ख़ाली मेरी थाली
भरा है तेरा पेट
अन्न उगाऊँ मैं
खाऊँ मैं सल्फ़ेट
मिटटी पानी से लड़ूँ
उसमे रोपूँ बीज
पसीना मेरा गन्धाए
महके तेरी कमीज़
ख़ूब जो उगे मेरी फ़सल
गिर जाए इसका मोल
कोल्ड-स्टोरेज में भरकर
पाओ तुम दाम अनमोल
जो व्यापारी बन गए
उनके खुले हैं भाग्य
जो बैठे धरती पकड़
रोए अपना दुर्भाग्य
गेहूँ न फैक्ट्री उपजे
कम्प्यूटर न बनाए धान
जिस दिन देश ये समझे
बढ़े किसान का मान