किसी एक वक़्त के लिए
यहाँ कोई एक विश्वास प्रमाणिक नहीं है
इसलिए नहीं कि
एक ही चाल
एक ही चरित्र के भीतर
यहाँ कई सारे चेहरे एक साथ रहा करते हैं
जो अपने-अपने वक़्त-ज़रूरत के मुताबिक
व्यावहारिक हो लेते हैं
बल्कि वहाँ जहाँ कोई रँग नहीं है
यहाँ तो चीज़ें पारदर्शी मिलें
पानीदार
चपलता
जिसे चतुर सुजान का प्रबल पर्याय कहा गया है
यहाँ अपने न्यूनतम आवेग में है
पता नहीं गहराई ही है या कि
भीतर सभी कुछ उथला है
सपाट किन्तु कैसे बताएँ कि
बीच की जो रँगीली पर्दानशीनी है
ताज्जुब होता है कि
कब उतरी केंचुल
कब विश्वास का नवीनीकरण हो लिया
तब भी
कुछ तो होते ही हैं
बता ही देते हैं कि
कम से कम
अपने बिल में तो साँप सीधा ही गया है
हाँ, प्रायः ऐसा भी होता है कि
वह अपने अण्डे तक ख़ुद ही खा जाता है
अब
सुदूर यात्रा पर निकला कोई बौद्ध
करुणा का चाहे जितना सन्देश दे
आँखों में पानी आने के लिए
पहले दिल का भर आना ज़रूरी है
और कोई भी दिल केवल तभी भर सकता है
जबकि कम से कम
उसके अपने लिए तो वह पानीदार हो कि
अन्ततः उसका विश्वास तो प्रामाणिक हो।