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किसी के हुस्न दिलारा पे मरने वालों में / राजेंद्र नाथ 'रहबर'

 
किसी के हुस्ने दिलारा पे मरने वालों में
हमारा नाम भी लिख लो ख़राब हालों में

हज़ार बार तुम्हें मैं ने भूलना चाहा
हज़ार बार तुम उभरे मिरे ख़यालों में

वो फूल अपने मुक़द्दर पे नाज़ करता है
सज़ा लो जिस को तुम अपने सियाह बालों में

पनाह मांगती है ज़ुल्मते-शबे-दैजूर
वो तीरगी है यहां सुब्ह के उजालों में

न हो सके वो हमारी किसी तरह 'रहबर'
झुकाया सर को बहुत मंदिरों, शिवालों में।