किसी दिन हम दीवाल पर पीठ टिका देंगे
हम जो बैठे हैं
रोशनी में कविता बाँचते हुए
किसी दिन हमारे कपड़े नदी में तैरते दिखेंगे
चिट्ठियों पर धूल जम जायेगी
कमरे में साँप भरे होंगे किसी दिन
किसी दिन जीभ का स्वाद मिट जायेगा
हाथ की लकीरें ग़ायब हो जायेंगी
रातों-रात क़िताबें खो जायेंगी
चश्मा टूट जायेगा तड़ाक-से
किसी दिन सिर्फ़ दीवाल होगी
जिस पर हम
टिकायेंगे पीठ ।
(रचनाकाल :1975)