बहुत साल तुम्हारे साथ चली
अब रुके तो उठ-उठ के गिरी
हरसड़क है नई
हर गली कुछपराई
किसी बिछुड़े ने
गले लग न कहा:
‘देर से सही
तू लौट तो आई’
बहुत साल तुम्हारे साथ चली
अब रुके तो उठ-उठ के गिरी
हरसड़क है नई
हर गली कुछपराई
किसी बिछुड़े ने
गले लग न कहा:
‘देर से सही
तू लौट तो आई’